यही मेरा घर है
धीरे से कानों में फुसफुसा गया एक कोना
गौरैया उछल उछलकर तसवीर बना रही है
‘इस दीवार पर लगाना समझी’
हवा जो रात भर घूमती रही सुनसान सड़कों पर
नहा आई तड़के ही बड़े तालाब में
वह रसोई में मगन कोई गीत गुनगुना रही है
वह सपना जो एक किनारे सकुचाया खड़ा था
आज फैल चुका है घर में
धूप के सुनहरे तिनके बनकर
इतनी इच्छाएँ इतनी दुआएँ
ऐसे ही तो बनता है घर
फुटपाथ में बियाबान में कहीं भी बस सकता है
वे घर, जो पलायन के फरमान जारी करते रहे
मेरे नहीं थे
अब यही घर मेरा है
यहीं रहूँगी ताउम्र
अब मैं पलायन नहीं करूँगी